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कुलपति मोहनलाल छीपा की यूनिवर्सिटी में विवादित नाटक का मंचन

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नेता को बताया कुत्ता

भोपाल। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के दो साल पूरे होने पर देश और दुनिया के तमाम भारत भक्तों द्वारा केंद्र की उपलब्धियों के बारे में जश्न मनाया जा रहा है तथा सभी शासकीय विभाग सरकार के काम-काज की सकारात्मक समीक्षा और रपट पेश कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश की राजधानी का अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय में गुरूवार को उस समय लोग अचंभित रह गए, जब यहाँ ‘आदत’ नाम से मंचित किए गए एक नाटक में नेता को अंबानी, बिरला, टाटा, बाटा कंपनियों का सीधेतौर पर नाम लेकर कुत्ता बताया  गया। नाटक का निर्देशन यहीं के शिक्षक रविन्द्र खड़गे द्वारा नाट्य विभाग के प्रमुख ओमप्रकाश प्रजापति की देख-रेख में कराया गया। वहीं नाटक शुरू होने के पूर्व बताया गया कि इसके संरक्षक कुलपति मोहनलाल छीपा और मार्गदर्शक डॉ. संजय तिवारी हैं।

atal bihari university

अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय में गुरुवार को हुआ यह कि यूनिवर्सिटी के नाट्य विभाग द्वारा ‘आदत’ नाम से नाटक तैयार कराया गया, जिसमें बताया गया कि पूंजीपति लगातार सर्वहारा वर्ग का शोषण कर रहे हैं। गरीबों को लूटने के लिए यह कभी भगवान का सहारा लेते हैं तो कभी धर्म और अपनी ताकत का। भाग्य का खेल बताकर अमीर लगातार अमीर होता जा रहा है और गरीब को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है। इसमें भारतीय संस्कृति को मूल्यहीन बताया गया और संवाद में कहा गया कि यह बेकार की बातें हैं। बताया गया कि करवाचौथ का व्रत तो अमीर औरतों का चोंचला है, गरीब तो 365 दिन भूखे रहते हैं।

इस मंचित नाटक में नाम न लेते हुए इशारों में दर्शाया गया कि नरेंद्र मोदी की सरकार गरीबों पर अत्याचार कर रही है, वह आज भी सुरक्षित नहीं है। मोदी के वक्त में असल राज पूंजीपतियों का है। नेता हकीकत में कुत्ते हैं, वे गरीबों के विकास के नाम पर नेतागिरी करते हैं तथा पूंजीपतियों के तलबे चाटते हैं। यहाँ नाटक के खेलेजाने के दौरान ही विद्यार्थियों की ओर से टिप्पणियां आना शुरूहो गई थीं, जिसमें कुछ छात्रों ने तो यहां तक कहा कि जेएनयू की पुनरावृत्ति हो रही है। यह खतरनाक है, ऐसे नाटकों का मंचन कम से कम शिक्षण संस्थानों में तो नहीं होना चाहिए।

इस संदर्भ में बतौर समीक्षक कुलपति की ओर से अंत में समाज विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर पवन कुमार शर्मा ने भी स्वीकारा कि यह भारतीय संस्कृति की मर्यादा के विपरीत है। हम जिस संस्कृति के पोषण के लिए खड़े हैं उसका यूं मजाक नहीं बनना चाहिए। नाटक में कलाकारों की प्रस्तुति अच्छी है लेकिन जिस थीम पर कार्य किया गया, उसकी सराहना बिल्कुल नहीं की जा सकती है।

गौरतलब है कि इससे पहले कुलपति मोहनलाल छीपा अजमेर के महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं।

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