लखनऊ। गर्मी शुरू होते ही धूप के चश्मों की बिक्री में तेजी आ गई है। तेज धूप से बचने के लिए लोग तरह-तरह के स्टाइलिश धूप के चश्मों का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन शायद इन्हें यह पतानहीं है कि सड़क किनारे बिकने वाले प्लास्टिक के चश्में का उपयोग आंखों के लिए कितना खतरनाक है। इसलिए सोच-समझकर के बाद डाॅक्टरी सलाह से ही चश्मों को अपनी आंखों का रखवाला बनाएं। कही ऐसा न हो कि गर्मी के चश्मे ही आपकी आंखों के दुश्मन बन जायं।
बाजार में बिक रहे अधिकांश चश्मों के ज्यादा प्रयोग से आंखों की रोशनी भी जा सकती है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश कुमार मिश्र की मानें तो सड़कों के किनारे मिलने वाले चश्मों के प्रयोग से 50 फीसदी युवा सिरदर्द, नंबर का चश्मा लगना, माइग्रेन जैसी समस्याओं से पीड़ित हो जाते हैं। चूंकि इनके ग्लास अच्छी क्वालिटी के नहीं होते हैं। इतना ही नहीं, कुछ दुकानों पर प्लास्टिक आदि से बने चश्मे भी बेचे जा रहे हैं, ऐसे में नौजवानों को चश्मा का स्टाइल पसंद आता है और वे उसे कम पैसे में लेकर अपनी आंखों की सुरक्षा की सोचने लगते हैं। लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है। नौजवान जिन चश्मों को अपनी आंखों का साथी मानते हैं, वे ही उनके खराब होने के कारण बनते हैं।
नहीं रोक पाते पराबैगनी विकिरण
नेत्र चिकित्सक श्यामाचरण की मानें तो ऐसे चश्मों में प्रयोग किया जाना वाला प्लास्टिक, सही क्वालिटी का नहीं होता। उनकी बनावट और कटिंग भी मानक के अनुसार नहीं होती, जबकि ब्रांडेड चश्मों में यूवी रेज ब्लॉकर होता है। हर कंपनी अपने मानकों के अनुरूप इसे तैयार करती है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मानक हैं। सड़क किनारे मिलने वाले चश्मों में ब्लॉकर नहीं होते, इसलिए ये सस्ते होते हैं। इनकी कटिंग और बनावट भी स्टैंडर्ड नहीं होती। कई बार सड़कों के किनारे ब्रांडेड चश्मंे भी बेंचे जाते हैं, लेकिन ये भी खतरनाक होते हैं। कंपनी चश्में तैयार करने के बाद उसका परीक्षण करती है। फेल होने पर इन चश्मों को आधी या कम कीमत पर बेंच दिया जाता है।
यह हो सकता है नुकसान
-सिर में दर्द,
-आंखों में दर्द,
-माइग्रेन,
-मोतियाबिंद,
-कॉर्निया फट सकता है
-नजर कमजोर हो सकती है
ये होती हैं कमियां
-ऑप्टिकल सेंटर नहीं होते,
-पूरी तरह से समतल नहीं होते,
-चश्मे में लहर होती हैं,
-अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं होते
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