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बाबरी मस्जिद केस की मुख्य पार्टी हाशिम अंसारी का इंतेकाल

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प्रधानमंत्री मोदी के मुरीद थे , विरोधी भी करते थे सम्मान

अयोध्या। अयोध्या में बाबरी मस्जिद विवाद में मुस्लिम समाज की ओर से मुख्य याचिकाकर्ता हाशिम अंसारी का अयोध्या में इंतेकाल हो गया।  हाशिम अंसारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुरीद थे। वह देश में हमेशा अमन-चैन के पैरोकार थे। इसीलिए जो लोग उनके धुर विरोधी थे, वे भी उनका सम्मान करते थे।
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हाशिम अंसारी का अयोध्या में ही आज भोर में इंतकाल हो गया। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े प्रशंसक थे। मुस्लिम समुदाय से भी मोदी को समर्थन करने की वह अपील करते थे। उनका मानना था कि मोदी अच्छा काम कर रहे हैं। वह सबका साथ सबका विकास चाहते हैं। इसलिए मुसलमानों को भी उनका समर्थन करना चाहिए।

कुछ माह पहले अपने आवास पर पत्रकारों से बात करते हुए अंसारी ने कहा था कि नरेंद्र मोदी आजादी के बाद देश के सर्वश्रेष्ठ नेता हंै। उन्होंने मोदी को अयोध्या आने का न्योता भी दिया था। कहा था कि अगर मोदी अयोध्या आते हैं तो वह उनका फूलों से स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा था, ’आजादी के बाद अगर देश को कोई एक मजबूत नेता मिला है तो वह मोदी हंै। आज बहुत सारे मुसलमान हैं जो मोदी की तारीफ करते हैं। मैं भी दिल से उनकी तारीफ करता हूं और मैं ऐसा करता रहूंगा। मैं सभी मुसलमानों से अपील करता हूं कि वे मोदी का साथ दें।’

कहते थे, अयोध्या ही है भगवान राम का घर

हाशिम अंसारी यह भी कहते थे कि अयोध्या भगवान राम का है और उन्हंे अब आजाद हो जाना चाहिए। कुछ माह पहले उन्हांेने ये भी कहा की मैं मरने से पहले अयोध्या विवाद का फैसला होते हुए देखना चाहता हूं। एक बार उन्होंने यहां तक कहा, ‘‘हमें शांति चाहिए देश में। ले जाओ बाबरी मस्जिद। हमें बाबरी मस्जिद नहीं, हमें शांति चाहिए।’’
कुछ समय पहले उन्होंने कहा था, ‘‘अयोध्या में रामलला अपनी जन्मभूमि पर तिरपाल में रहें और नेताजी लोग राजमहलों में रहें।’’ यही नहीं आगे भी बोले, ‘‘तिरपाल में रामलला अब बर्दाश्त नहीं हैं। अयोध्या पर हो चुकी जितनी सियासत होनी थी, अब तो बस यही चाहता हूं कि रामलला जल्द से जल्द आजाद हों।’’

अयोध्या के गांधी कहे जाते थे

उन्हें लोग अयोध्या का गांधी कहते थे। राम जन्मभूमि मुद्दे के हल हेतु वह जीवन भर प्रयासरत रहे। अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के महंत और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत ज्ञान दास के साथ मिलकर उन्होंने ही इस मामले में सुलह-समझौते की पहल शुरू की थी। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी वह समझौते को लेकर बातचीत का दौर चलाते रहे। इस बीच कुछ लोग उच्चतम न्यायालय चले गये। फिर भी उन्होंने अपना प्रयास नहीं छोड़ा। हिन्दुओं का कोई बड़ा संत अयोध्या आता था तो वह उनका बड़ा सम्मान करते थे।
इसके अलावा उनका जीवन बड़ा ही सादगीपूर्ण था। अपने पुराने और जर्जर मकान में ही उन्होंने अभावग्रस्त जीवन जिया। समय-समय पर उन्हें तमाम प्रलोभन मिले, लेकिन वह डिगे नहीं। प्रलोभनों को उन्होंने ठुकरा दिया। अपने इसी व्यवहार के चलते लोग उन्हें अयोध्या का गांधी कहते थे।

वर्ष 1949 में अयोध्या विवाद से जुड़े

हाशिम अंसारी का नाम अयोध्या विवादित केस से साल 1949 में ही जुड़ गया था। उस वर्ष 22-23 जनवरी की रात विवादित ढांचे में रामलला के प्रकट होने की घटना को अयोध्या कोतवाली के तत्कालीन इंस्पेक्टर ने दर्ज कराया था। उसमें गवाह के रूप में हाशिम अंसारी सबसे पहले सामने आए थे। इसके बाद 18 दिसंबर 1961 को दूसरा केस हाशिम अंसारी, हाजी फेंकू सहित नौ मुसलमानों की तरफ से मालिकाना हक के लिए फैजाबाद के सिविल कोर्ट में लाया गया।
इस दौरान राम मंदिर के प्रमुख पैरोकार रहे दिगंबर अखाड़ा के तत्कालीन महंत परमहंस रामचन्द्र दास से इनकी मित्रता चर्चा में रही। बाद में महंत परमहंस रामचन्द्र दास राम जन्मभूमि के अध्यक्ष हुए। महंत रामचन्द्र दास की कुछ वर्ष पहले मौत हो गई तो अंसारी बड़े दुखी थे।

अंसारी अयोध्या विवाद के राजनीतिकरण से नाराज रहते थे। वह प्रदेश के कैबिनेट मंत्री मो0 आजम खान के रवैये से भी असंतुष्ट रहते थे। कहते थे कि मुकदमा हम लड़ें और राजनीति का फायदा आजम खान उठाएं। इसलिए मैं अब बाबरी मस्जिद मुकदमे की पैरवी नहीं करूंगा। इसकी पैरवी आजम खान करें। हालांकि बाद में बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी के मनाने पर वह मुकदमे की पैरवी करने लगे थे।

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