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हिमाचल चुनाव में बंदर बनेंगे मुख्य मुद्दा, यह है लोगों को दिक्कत


शिमला। इन दिनों सोशल मीडिया पर राहुल गांधी का पालतू पीडी भले ही चर्चा में हो लेकिन अब हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बंदर गरमा-गरम मुद्दा बनने वाले हैं।

जो नेता लोगों को बंदरों के आतंक से छुटकारा दिलाने का वादा करेगा, वोट उसे ही मिलेंगे। इसकी मुख्य वजह यह है कि हिमाचल में बंदरों का आतंक है। राज्य के लोग बंदरों के आतंक से इस कदर परेशान हैं कि वे चुनाव मेें उम्मीदवारों से पहले यह वादा ले रहे हैं कि उन्हें बंदरों से निजात दिलाएंगे या नहीं।


दरअसल हिमाचल में राज्यभर में बंदरों की संख्या 4 लाख को पार कर गई है। वहां महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसा ही अहम मुद्दा बन गई है बंदरों की समस्या। किसान तो इसलिए परेशान हैं कि बंदर उनकी फसलों-बगीचों को नष्ट कर जाते हैं। यह न केवल फसलों को नुक्सान पहुंचा रहे , बल्कि पर्यटन के लिए भी खतरा बन रहे हैं। हिमाचल के लोगों सहित सैलानियों को भी बंदर हमला कर रहे हैं। पलक झपकते ही बंदर खाने का सामान झटक कर ले जाते हैं। विरोध किए जाने पर वे हमला कर देते हैं।

किसी भी सरकार ने नहीं ली सुध

पांच साल से हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है। इससे पहले पांच साल बीजेपी का राज रहा। मगर बंदरों की समस्या से किसी भी सरकार ने मुक्ति नहीं दिलाई। केंद्र सरकार विधानसभा में प्रस्ताव पास होने के बाद बंदर को हानिकारक हिंसक पशु की श्रेणी में रख चुकी है। इसके बाद 6 महीने तक राज्य में बंदरों को मारने की अनुमति भी दे दी गई है। मगर हैरानी यह है कि हिमाचल की वीरभद्र सरकार ने बंदरों को मारने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।

डिवाइस भी नहीं आया काम

हिमाचल में सरकार ने बंदरों को लोगों से दूर रखने के लिए पारम्परिक जुगाड़ के साथ ही आधुनिक तकनीक भी आजमाई, लेकिन बंदरों के आगे एक न चली। बीते साल अप्रैल में शिमला में बंदरों के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए हिमाचल प्रदेश वन्य प्राणी विभाग ने आधुनिक तकनीक अपनाई। इसके लिए शिमला में बीएसएनएल बिल्डिंग पर पायलट प्रोजैक्ट के तहत अल्ट्रासोनिक मौंकी रेपेलैंट साउंड डिवाइस लगाया गया था। लेकिन बाद में बंदर इस डिवाइस के भी आदी हो गए।

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