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कोरोना महामारी के बीच आपातकालीन स्थिति में दीपावली कैसे मनाएं?

वसुबारस अर्थात् गोवत्स द्वादशी – 12 नवम्बर 2020
वसुबारस अर्थात् गोवत्स द्वादशी, दीपावली के आरंभ में आती है । यह गोमाता का उसके बछडे के साथ पूजन करने का दिन है। शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण द्वादशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशी के नाम से जानी जाती है। यह दिन एक व्रत के रूप में मनाया जाता है।

गोवत्सद्वादशी के दिन श्री विष्णु की आपतत्त्वात्मक तरगें सक्रिय होकर ब्रह्मांड में आती हैं। इन तरंगों का विष्णुलोक से ब्रह्मांड तक का वहन विष्णुलोक की एक कामधेनु अविरत करती हैं। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कामधेनु के प्रतीकात्मक रूप में इस दिन गौ की पूजन की जाती है। गोवत्सद्वादशी पर गौपूजन करने पर व्यक्ति का कुछ क्षण आध्यात्मिक स्तर बढता है।

धनत्रयोदशी – 12 नवम्बर 2020

शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण त्रयोदशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी अर्थात ‘धनत्रयोदशी’। इसी को साधारण बोलचाल की भाषा में ‘धनतेरस’ कहते हैं। धनत्रयोदशी देवताओं के वैद्य धन्वंतरि जयंती का दिन है। आयुर्वेद के विद्वान एवं वैद्य मंडली इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन करते हैं और लोगों की दीर्घ आयु तथा आरोग्यलाभ के लिए मंगलकामना करते हैं।

धनत्रयोदशी के दिन स्वर्ण अथवा चांदी के नए पात्र क्रय करने का अर्थात् खरीदने का शास्त्रीय कारण – धनत्रयोदशी के दिन लक्ष्मी तत्त्व कार्यरत रहता है। इस दिन स्वर्ण अथवा चांदी के नए पात्र क्रय करने के कृत्य द्वारा श्री लक्ष्मी के धनरूपी स्वरूप का आवाहन किया जाता है और कार्यरत लक्ष्मीतत्त्व को गति प्रदान की जाती है। इससे द्रव्यकोष में धनसंचय होने में सहायता मिलती है। यहां ध्यान रखने योग्य बात यह है कि, धनत्रयोदशी के दिन अपनी संपत्ति का लेखा-जोखा कर, शेष संपत्ति ईश्वरीय अर्थात् सत्कार्य के लिए अर्पित करने से धनलक्ष्मी अंत तक रहती है।

नरक चतुर्दशी – 14 नवम्बर 2020

शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशी के नाम से पहचानी जाती है। इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया। तब से यह दिन नरक चतुर्दशी के नाम से मनाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर को उसके अंत समय पर दिए वर के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व जो अभ्यंगस्नान करता है, उसे नरकयातना नहीं भुगतनी पडती।

अभ्यंगस्नान का महत्व

दीपावली के दिनों में अभ्यंगस्नान करने से व्यक्ति को अन्य दिनों की तुलना में 6 प्रतिशत सात्त्विकता अधिक प्राप्त होती है। सुगंधित तेल एवं उबटन लगाकर शरीर का मर्दन (मालिश) कर अभ्यंगस्नान करने के कारण व्यक्ति में सात्त्विकता एवं तेज बढता है।

यमतर्पण

श्री यमराज धर्म के श्रेष्ठ ज्ञाता एवं मृत्यु के देवता हैं। प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु अटल है परन्तु असामयिक मृत्यु के निवारण हेतु यमतर्पण की विधि बताई गई है। दीपावली के काल में यमलोक से सूक्ष्म यमतरंगें भूलोक की ओर अधिक मात्रा में आकृष्ट होती हैं। इसलिए इस काल में यह विधि विशेषरूप से करने का विधान है।

नरक चतुर्दशी के दिन विविध स्थानों पर दीप जलाने का कारण

नरक चतुर्दशी की पूर्वरात्रि से ही वातावरण दूषित तरंगों से युक्त बनने लगता है। पाताल की अनिष्ट शक्तियां इसका लाभ उठाती हैं। वे पाताल से कष्टदायक नादयुक्त तरंगें प्रक्षेपित करती हैं। दीपों से प्रक्षेपित तेजतत्त्वात्मक तरंगें वायुमंडल के कष्टदायक रज-तम कणों का विघटन करती हैं। इस प्रक्रिया के कारण अनिष्ट शक्तियों का सुरक्षाकवच नष्ट होने में सहायता मिलती है।

दीपावली में आने वाली अमावस्या का महत्त्व

सामान्यतः अमावस्या को अशुभ मानते हैं; परंतु दीपावली काल की अमावस्या शरद पूर्णिमा अर्थात् कोजागिरी पूर्णिमा के समान ही कल्याणकारी एवं समृद्धिदर्शक है।

श्री लक्ष्मीपूजन

दीपावली के इस दिन धन -संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी श्री महालक्ष्मी जी के पूजन करने का विधान है। दीपावली की अमावस्या को सभी के घर अर्धरात्रि के समय श्रीलक्ष्मी जी का आगमन होता है। घर को पूर्णतः स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित कर दीपावली मनाने से देवी श्री लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और वहां स्थायी रूप से निवास करती हैं। इसीलिए इस दिन श्री लक्ष्मी जी का पूजन करते हैं और दीप जलाते हैं। यथासंभव श्री लक्ष्मी पूजन की विधि करते हैं।

लक्ष्मी पूजन के लाभ

भक्तिभाव बढना : श्री लक्ष्मी पूजन के दिन ब्रह्मांड में श्री लक्ष्मी देवी एवं कुबेर देवता का तत्त्व अन्य दिनों की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक मात्रा में प्रक्षेपित होता है। इस दिन इन देवताओं का पूजन करने से व्यक्ति का भक्तिभाव बढता है और 3 घंटों तक बना रहता है।

अनिष्ट शक्तियोंका नाश होना : श्री लक्ष्मी पूजन के दिन अमावस्या का काल होने से श्री लक्ष्मी जी का मारकतत्त्व कार्यरत रहता है। पूजक के भाव के कारण पूजन करते समय श्री लक्ष्मी जी के मारक तत्त्व की तरंगें कार्यरत होती हैं । इन तरंगों के कारण वायुमंडल में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों का नाश होता है।

अलक्ष्मी निःसारण

अलक्ष्मी अर्थात् दरिद्रता, दैन्य और आपदा। निःसारण करने का अर्थ है बाहर निकालना। लक्ष्मी पूजन के दिन नई झाडू खरीदी जाती है। उसे ‘लक्ष्मी’ मानकर मध्यरात्रि में उसका पूजन करते हैं। उसकी सहायता से घर का कूडा निकालते हैं। कूडा बाहर फेंकने के उपरांत घर के कोने–कोने में जाकर सूप अर्थात् छाज बजाते हैं।

कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न आपातकालीन स्थिति में दीपावली कैसे मनाएं?

‘इस वर्ष 13 से 16 नवंबर की अवधि में दीपावली है । कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर लागू की गई संचार बंदी यद्यपि उठाई जा रही है तथा जनजीवन पूर्ववत हो रहा है, तथापि कुछ स्थानों पर सार्वजनिक प्रतिबंधों के कारण सदैव की भांति दीपावली मनाना संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे स्थानों पर दीपावली कैसे मनाएं, इससे संबंधित कुछ उपयुक्त सूत्र और दृष्टिकोण यहां दे रहे हैं।

(टिप्पणी : ये सूत्र जिस स्थान पर दीपावली का त्योहार मनाने हेतु प्रतिबंध अथवा मर्यादा हैं, ऐसे स्थानों के लिए हैं। जिन स्थानों पर प्रशासन के सर्व नियमों का पालन कर यह त्योहार मना पाना संभव है, उस स्थान पर प्रचलित प्रथा के अनुसार दीपावली मनाएं।)

 

प्रश्न : वसुबारस/गोबारस के दिन बाहर निकल कर क्या सवत्स गाय (बछडे सहित गाय) की पूजा करें ? पूजा करना संभव न हो, तो क्या करना चाहिए?

उत्तर : वसुबारस/गोबारस यह दिन दीपावली से जुडकर आता है। इसलिए उसका समावेश दीपावली में किया जाता है; परंतु वास्तविक रूप से यह त्योहार अलग है। वसुबारस/गोबारस के दिन बाहर निकलकर सवत्स गाय की पूजा करने में बाधा हो, तो यदि घर में गाय की मूर्ति हो, तो उसकी पूजा करें। घर में गाय की मूर्ति न हो, तो पीढे पर गाय का चित्र बनाकर उसकी पूजा करें।

प्रश्न : नरकचतुर्दशी के दिन आकाश में तारे रहने तक ब्राह्ममुहुर्त पर अभ्यंगस्नान करते हैं। चिचडा नामक वनस्पति की शाखा सिर से पैरों तक और पुनः सिर तक 3 बार गोलाकार घुमाते हैं। इसके लिए जडसहित चिचडा वनस्पति का उपयोग करते हैं। यदि चिचडा वनस्पति उपलब्ध न हो, तो क्या करना चाहिए?

उत्तर : चिचडा वनस्पति उपलब्ध न होने पर ईश्वर से प्रार्थना कर स्नान करना चाहिए।

प्रश्न : दीपावली के दिनों में यमतर्पण, ब्राह्मणभोजन, वस्त्रदान किया जाता है। यह करना संभव न हो, तो क्या करना चाहिए?

उत्तर : यमतर्पण की विधि घर में करना संभव है। इसमें यमराज के 14 नाम लेकर पानी में तर्पण किया जाता है। इस तर्पण की विधि पंचांग में दी होती है। उस प्रकार विधि करनी चाहिए। ब्राह्मण भोजन करवाना तथा वस्त्रदान करना संभव न हो, तो अर्पण का सदुपयोग हो, ऐसे स्थान पर अथवा धार्मिक कार्य करनेवाली संस्थाओं को कुछ राशि अर्पण करनी चाहिए।

प्रश्न : लक्ष्मीपूजन के लिए धना, गुड, कीलें, बतासे आदि सामग्री उपलब्ध न हो पाए, तो क्या करना चाहिए?

उत्तर : लक्ष्मीपूजन के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध न हो, तो जितनी सामग्री उपलब्ध है, उस सामग्री में भावपूर्ण पूजा विधि करनी चाहिए। बतासे आदि साहित्य न मिले, तो देवता को घर में घी शक्कर, गुड शक्कर अथवा किसी मिठाई का भोग लगाएं।

प्रश्न : अभ्यंगस्नान के लिए उबटन उपलब्ध न हो, तो क्या करना चाहिए?

उत्तर : अभ्यंगस्नान के लिए उबटन उपलब्ध न हो, तो उसके स्थान पर नारियल के तेल में हलदी मिलाकर वह लगाएं।

प्रश्न : तुलसी विवाह के लिए पुरोहित उपलब्ध न हों, तो क्या करना चाहिए?

उत्तर : तुलसी विवाह के लिए पुरोहित उपलब्ध न हो, तो जैसे भी संभव हो भावपूर्ण पूजा करें। वह भी न कर पा रहे हों, तो ‘श्री तुलसीदेव्यै नमः’ नामजप करते हुए तुलसी की पूजा करें। पूजा होने के उपरांत रामरक्षा की आगे दी गई पंक्तियां बोलें।

‘रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ॥
रामान्नास्ति परायणम् परतरम् रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥’

उसके पश्चात बृहद्स्तोत्ररत्नाकर नामक ग्रंथ में दिए गए सरस्वतीस्तोत्र के प्रारंभ की आगे दी हुई पंक्तियां बोलें।

‘या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।

सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥’

ये श्लोक बोलने के पश्चात ‘सुमुहुर्त सावधान’ कहकर तुलसी पर अक्षत चढाएं।

दीपावली का आध्यात्मिक महत्त्व, त्योहार मनाने की पद्धति से संबंधित विस्तृत जानकारी सनातन के ग्रंथ ‘त्योहार मनाने की उचित पद्धतियां और शास्त्र’ में दी गई है। www.sanatanshop.com जालस्थल पर यह ग्रंथ ऑनलाइन विक्रय के लिए उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त www.sanatan.org जालस्थल पर भी दीपावली से संबंधित विस्तृत जानकारी उपलब्ध है । जिज्ञासु ये जालस्थल अवश्य देखें।

दृष्टिकोण :

वर्तमान में यह परंपरा मान ली गई है कि, दीपावली का त्योहार मौज करने के लिए होता है। वर्तमान आपातकालीन स्थिति को देखते हुए मौज में समय व्यर्थ करना उचित नहीं है। कोरोना का संकट यद्यपि धीरे-धीरे न्यून हो रहा है, तथापि आपातकाल में किसी भी क्षण कोई भी संकट आ सकता है। जागतिक स्तर पर कुछ देशों मेें युद्ध हो रहे हैं। अनेक देशों में परस्पर संघर्ष हो रहे हैं। अनेक स्थानों पर युद्धजन्य परिस्थिति है। ये घटनाक्रम संसार को तीसरे विश्वयुद्ध की ओर ले जाने वाले हैं। आने वाले भीषण आपातकाल का सामना करने के लिए साधना का बल होना आवश्यक है। वर्तमान काल साधना के लिए संधिकाल है तथा इस काल में की गई साधना का फल अनेक गुना अधिक मिलता है। इसलिए दीपावली के दिनों में मौज करने में समय व्यर्थ न करते हुए अधिकाधिक समय साधना के लिए प्रयत्न करने से व्यक्ति को उसका आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होगा।

– चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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