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हाईकोर्ट के पूर्व जज ने सुझाया मन्दिर-मस्जिद साथ बनाने का फार्मूला

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लखनऊ। अयोध्या विवाद आपसी सहमति से सुलझाने की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद अब हाईकोर्ट के पूर्व जज पलोक बसु ने एक साथ मन्दिर-मस्जिद बनाने का फार्मूला सुझाया है। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेन्च ने 30 दिसम्बर 2010 को अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने की बात कही थी।

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कोर्ट ने राम मूर्ति वाला हिस्सा रामलला विराजमान को, राम चबूतरा और सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया था। हालांकि सहमति नहीं बनने पर 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया था।

अब जस्टिस पलोक बसु ने अपना फॉर्मूले में सुझाया है कि हाईकोर्ट ने जो जमीन निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी है, वह जमीन दोनों पक्षों को दे दी जाए। तीसरा हिस्सा जो राम लला विराजमान को दिया गया है, केवल उस हिस्से में राम मन्दिर बनाया जाए।

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खास बात है कि जस्टिस बसु ने अपने इस फार्मूले में कहा है कि मुसलमानों को विवादित भूमि का जो हिस्सा मिलेगा, उस पर कोई पक्ष किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं करेगा और उस जमीन को चारों तरफ से दीवार से घेरकर सदा सदा के लिए खाली छोड़ दिया जाएगा।

उनके प्रस्ताव के मुताबिक मुस्लिम पक्ष इस विवादित जमीन से करीब 200 मीटर दूर अपनी मस्जिद का निर्माण करेंगे, जिस जमीन पर मस्जिद के निर्माण का प्रस्ताव है, वह युसूफ की आरा मशीन के नाम से अयोध्या में मशहूर है।

जस्टिस बसु ने अपने फार्मूले में मन्दिर और मस्जिद साथ साथ बनाने की भी बात कही है। हालांकि इस फार्मूले पर सहमति बनने के आसार नहीं हैं, क्योंकि मुकदमें से जुड़े सभी पक्ष अपनी-अपनी बातों पर अड़े हैं।

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने भी स्पष्ट किया है कि यह विवाद आपसी बातचीत के जरिये हल नहीं करना सम्भव नहीं है और इसका समाधान सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से ही हो सकता है।

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