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CAA और NRC देश के हित में, दूसरों के झांसे में न आएं

नई दिल्ली। नागरिकता संसोधन कानून (सीएए) और भारतीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) का देश के अनेक हिस्सों में विरोध हो रहा है। भोलेभाले मुस्लिमों और शोषितों को भड़काकर सड़कों पर उतार दिया गया है। राजधानी दिल्ली सहित पूर्वोत्तर और पश्चिमी बंगाल में हिंसा की घटनाएं भी हुई हैं। इन दोनों के लेकर नागरिकों में भ्रम की स्थिति का लाभ असामाजिक तत्व उठा रहे हैं। जबकि इन दोनों से ही भारतीय नागरिकों को कोई हानि नहीं है। भारतीय नागरिक चाहे वह हिंदू है, मुसलमान है, सिख है या ईसाई है, उसे सीएए और एनआरसी से कोई खतरा नहीं है। एनआरसी के जरिए सरकार देश में घुसपैठियों की पहचान करना चाह रही है, जबकि सीएए से हमारे तीन पड़ोसी देशों में प्रताडि़त किए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिलेगी। इन दोनों की विस्तृत जानकारी निम्न है-

NRC क्या है?
भारतीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) असम में केंद्र सरकार द्वारा तैयार भारतीय नागरिकों का रजिस्टर है। राज्य में भारतीय नागरिकों को पहचान कर उनको इसमें दर्ज किया गया है। गत 20 नम्बर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यह ऐलान किया है कि असम की तरह अब पूरे देश में यह व्यवस्था लागू की जाएगी और भारतीय नागरिकों की पहचान कर उन्हें भारतीय नागरिकता पंजी में दर्ज किया जाएगा। ऐसी ही एक पंजी 1951 में मतगणना के समय तैयार की गई थी मगर उसे दोबारा कभी अपडेट नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2013 में एनआरसी तैयार करने का काम शुरू हुआ था।

सरकार का तर्क
देश भर में एनआरसी लागू करने से घुसपैठियों की पहचान होगी। उन्हें उनके मूल देश में भेजने में आसानी होगी।

 

विरोधियों के तर्क 
सरकार खास समुदाय को निशाना बनाने के लिए यह कर रही है। दस्तावेज नागरिकों से क्यों मांगे जा रहे हैं, सरकार साबित करे कि कौन घुसपैठिया है।

CAA क्या है?
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) भारत में बिना दस्तावेज रह रहे तीन पड़ोसी देशों के अवैध प्रवासियों को नागरिकता का प्रावधान करता है। यह प्रावधान पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से अवैध तरीके से आकर भारत में बसे हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध और ईसाइयों को नागरिकता देने के लिए है। यह प्रावधान उक्त धर्मों के सिर्फ उन अवैध प्रवासियों पर लागू होगा जो 31 दिसम्बर 2014 से पहले भारत आ गए थे। इससे पहले भारत की नागरिकता सिर्फ उन्हीं पात्र लोगों को दी जा सकती थी जो कम से कम 11 साल से भारत में रह रहा हो या भारत में पैदा हुए हों। इस तरह अब यह अवधि 5 साल हो गई है। इसके अनुच्छेद 7 के उपबंध डी के तहत यह भी प्रावधान किया गया है कि अगर कोई ओवरसीज नागरिकता कार्ड होल्डर नागरिकता विधेयक के किसी प्रावधान का उल्लंघन करता है तो उसकी ओवरसीज नागरिकता रद्द की जा सकती है।

सरकार का तर्क
नागरिकता का प्रावधान उक्त 5 धर्मों के अनुयायियों के लिए इसलिए किया गया है, क्योंकि ये अपने मूल देशों में अल्पसंख्यक हैं और इस वजह से उनका वहां उत्पीडऩ हो रहा है। प्रताडऩा की वजह से आए शरणार्थियों को नागरिकता दी जानी चाहिए।

 

विरोधियों के तर्क 
धर्म के आधार पर नागरिकता तय करना और एक खास धर्म को इससे वंचित रखना भारतीय संविधान की मूलभावना के विपरीत है। पाकिस्तान में अहमदिया और शिया मुस्लमानों को भी प्रताडि़त किया जा रहा है। म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लमानों और हिंदुओं को व श्रीलंका में हिंदुओं और तमिल ईसाइयों को प्रताडि़त किया जा रहा है। इनके लिए नागरिकता का प्रावधान क्यों नहीं? विरोध कर रहे असम के लोगों का कहना है कि एनआरसी से जो घुसपैठिए साबित हुए उनमें से एक बड़ी संख्या को ही सरकार नागरिकता देने जा रही है।

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