आदरणीय बंधुओं,
जय श्री नामदेव…
आम तौर पर सामाजिक मंच पर हंमेशां बात लेने की आती है – जैसा कि – मुझे क्या मिलेगा ? मुझे क्या दिया ? मेरा क्या लाभ ? व्यक्ति अपने माता-पिता, समाज व देश से भी यही उम्मीद करता है कि मुझे क्या मिलेगा ? भगवान ने जिस इन्सान को इतना बुद्विमान व शक्तिमान बनाया कि वो चन्द्र पर भी गया, मगर उसकी मानसिकता आज तक नहीं बदली इस दुनिया के श्रेष्ठतम प्राणी इन्सान को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि व्यक्ति के अधिकार व दायित्व एक ही सिक्के के दो पहलु है। यदि वो अधिकार वहन करता है तो उसे दायित्वों का निर्वाह करना ही होगा।
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समाज में प्रत्येक व्यक्ति को जन्म के साथ ही कुछ अधिकार प्राप्त हो जाते हैं और साथ साथ उसका समाज के प्रति दायित्व भी। इतिहास गवाह है कि समाज को दिशानिर्देश देना समाज के बुद्विजीवीओं का दायित्व है। आज सभी समाज विकसित व सम्पन्न हुए है वे समाज के बुद्विजीवीओं के त्याग व मेहनत की निष्पत्ति है। प्रश्न यह भी उठता है कि जो समाज पिछड़े है उसके पीछे मूल कारण क्या है ? इसके पीछे भी एहसान फरामोश बुद्विमान लोग ही है, जिन्होंने समाज से अधिकार पाकर दायित्व को अगुंठा बता दिया । समाज में आज भी ढेरों समस्याएं मौजूद है, मगर बुद्धिजीवीओं व स्वार्थी लोगों का वही रटण कि- मेरा क्या लेना-देना ? मेरा क्या फायदा ? ऐसे प्रश्न उसके अन्दर उत्पन्न हो ही जाते है।
प्रश्न फिर वही कि हम क्या करें ? जिसका उत्तर है – हमें त्याग व बलिदान की भावना से इस बात पर विचार करना होगा कि इस समाज में पैदा होने के बाद समाज ने हमें सब कूछ दिया, मगर इसके बदले में हमने समाज को क्या दिया ? यह कोई उधार नहीं है, यह तो ऋण है समाज का हमारे ऊपर, जिसे हमें हर हाल में उतारना है । यदि हम इस ऋण को न चुकाएं तो हमारा जीवन पशु समान ही रहेगा ।
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में उन सभी लोगों को नम्र निवेदन करता हूँ – जो अपनी उम्र के अन्तिम पड़ाव में हैं – वो यह मंथन करे कि समाज को क्या दे सकते है ?
अधिकतर यह भी सूनने में आता है कि – दूसरे लोग तो समाज के लिए कूछ नहीं करते, तो मैं क्युं करुं ? में व्यक्तिगत तौर पर मानता हूँ कि दायित्व निभाने की खुशी अधिकार कभी नहीं दे सकते ।
अन्त मे एक छोटी सी बात महान सिकन्दर यूनान से युद्ध जीतते-जीतते महान सम्राट बना। लेकिन मरने से पहले उसने अपने लोगों से कहा कि, मेरे दोनों हाथ कब्र से बाहर रख देना, ताकि दुनिया में देखने वालों को पता चले कि, में दुनिया में खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जा रहा हूँ – साथ कूछ नहीं ले जा रहा हूँ। सिकंदर के जीवन की सच्चाई को देखकर हमें अपने जीवन में त्याग के अवसर निर्धारित करने ही होंगे। रोजाना सामाजिक ग्रुप में सुनने में आता है कि फलाना-फलाना व्यक्ति दुनिया छोड़ गये। हमें भी यही रास्ते जाना हैं, इसलिए हमे निजी स्वार्थों की परिधी से बाहर निकलकर कुछ त्याग करने की आवश्यकता है। जल्दी करें, समय पवन से भी तेज जा रहा है, कुछ करना है तो कर दें, अन्यथा पछतावे के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा। जय श्री नामदेव ।
✍ सुरेशचंद्र देवराजजी राठोड, थराद, हाल – बडौदा, गुजरात